आदम युग के घड़ी का एक दिन कैसा बीता
#घड़ीकेविचार
लार टपक रहा उनके मुंह से,
अब तो भोर भी हो गई है,
जाने कब आएगी बहु उसकी,
अभी घड़ी के मन में ये विचार आया ही था की,
बहु उसकी पाजेब बजाए आई,
झटपट पल्लू पकड़,
दादी सास को बिठाई और फुरसत से उनको साफ कर,
अपनी जगह पे लेटा दिया,
जेब में पैसे रखे हैं लेकिन,
बाप जनाब कभी खुद पे खर्च करेंगे नहीं,
उठते ही बच्चों को जगा पढ़ने कहेंगे,
सुहागने मांग भर,
रसोई संभाल लेती हैं,
पति के दफ़्तर के साथ,
खुद भी दफ़्तर चली जाती हैं,
घड़ी की सुई दोपहर बजाती है,
और बेरोजगार युवाओं के अवसाद को चरम तक पहुंचाती है,
रखी हैं सारी डिग्रिया,
उनकी अलमारी...
लार टपक रहा उनके मुंह से,
अब तो भोर भी हो गई है,
जाने कब आएगी बहु उसकी,
अभी घड़ी के मन में ये विचार आया ही था की,
बहु उसकी पाजेब बजाए आई,
झटपट पल्लू पकड़,
दादी सास को बिठाई और फुरसत से उनको साफ कर,
अपनी जगह पे लेटा दिया,
जेब में पैसे रखे हैं लेकिन,
बाप जनाब कभी खुद पे खर्च करेंगे नहीं,
उठते ही बच्चों को जगा पढ़ने कहेंगे,
सुहागने मांग भर,
रसोई संभाल लेती हैं,
पति के दफ़्तर के साथ,
खुद भी दफ़्तर चली जाती हैं,
घड़ी की सुई दोपहर बजाती है,
और बेरोजगार युवाओं के अवसाद को चरम तक पहुंचाती है,
रखी हैं सारी डिग्रिया,
उनकी अलमारी...