...

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किरदार ए इल्जाम
जिंदगी ए तबीब में यूं भी रखा क्या है ?
बज्म ए बेरूखी की लोगो को वजह क्या है ?

यूं तो हम भी कभी बे- जोड़ हुआ करते थे
फिर अंदाज ए उल्फत को अब हुआ क्या है ?

हवा ख़्वाह अब रुख बदलते है ए इरफान ?
जरा पूछो इस रब्त ए सादगी में रखा क्या है ?

पूरे शहर में हम ही बुरे बने बैठे है क्या ?
जरा पूछे कोई की हर दिल में छुपा क्या है ?

न तुम बेहतर थे न हम है न वो गालिब ?
फिर इस इल्जाम ए गुफ्तू में रखा क्या है ?

गर चे कमी न होती तो फरिश्तें न बन जाते ?
थोड़े बुरे बन जाने में आखिर बुरा क्या है ?

शरीफों से सहन नहीं होगी इरफान ए तोहमत,
बहुत कुछ लिखना होगा, चुप रहने से हुआ क्या है ?

© 1rfan_writes