...

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दास्तान
बैठा मैं आईने के सामने
देख रहा था खुद को...

आँखों में झांका...बड़ी गहरी सी नजर आयी !
उदासी थी या मायूसी ?...बहुत धुंधली नजर आयी !
माथा भरा हुआ था....सिलवटों से
चेहरे पर खामोशी नजर आयी ,
थोड़ी हिम्मत लगा के लब मुस्कराने ही लगे....

कि मन कह उठा....!!! रो लू क्या ज़रा?????


© कविता खोसला

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