...

3 views

खुद की किस्मत
उठने लगे है सवाल काबू में नही मन
जोड़ा था रिश्ता स्वार्थ से छूटा है हर दामन
बंधने लगी जंजीर है फुरसत में पड़ा हूं
जीवन के उलझे मोड़ पर अकेला खड़ा हूं
सीखा न कभी स्वार्थ में बहने का सलीका
संबंध के लिए मैं खुद अपनो से लड़ा हूं
उम्मीद वो बिखर गई थी जीने का ज़रिया
इंसान के उस दर्द को घुट घुट के मैं पिया
एक पाँव चला जाता था ऐसे बुलाने पर
अपना नही बस लोभ था कर्म के ऊपर
अब समझ आया स्वार्थ में उसका गुज़रा था
पहचान मेरी कुछ नही मैं खुद आवारा था
संबंध का बस आड़ था जो समझ न पाया
मैं था नही कुछ उसका कोई और प्यारा था
सोचता हूं उस रिश्ते को नाम कैसे दू
जो कर्म में अपराध है ये मान कैसे लूँ
थी वजह यही तोड़ दी जो रिश्ते की डोरी
अब होगी खुद के कर्म से ये ज़िन्दगी पूरी
🙏🙏🙏जय महाकाल🙏🙏🙏
© Roshanmishra_Official