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आदत
बचपन से ही चीजें हो या लोग मुझे आदत बहुत जल्दी पड़ जाती है, फिर वो तभी छूटती है जब तक कोई वो सब छीन ना ले मुझसे ।

बचपन में माँ के साथ एक कोने में सोने की आदत थी मुझे
फिर दिन भर बैठती थी तो बस उसी कोने में
उसी कोनें में दिन भर बैठकर पढ़ भी लेती थी
पता नहीं वो bed का कोना क्यों नहीं छूटता था मुझसे।

फिर बड़े हो कर जब अलग bed मिला तो फिर एक कोना चुन लिया मैंने और हर रोज़ वहीं सोती हूँ मैं
शायद एक आदत ही तो है ये!

एक और आदत नाजाने कब लग गई कि सुबह उठते ही मैं माँ को ढूँढती हूँ उनके बिना जैसे सुबह की शुरुआत ही नहीं होती ।

आदतें भी कितनी मासूम होती हैं ना, जाने कब लग जाती हैं पर छूटने पर बहुत तकलीफ़ दे जाती हैं ।

फिर कुछ दिन पहले घर में एक नया sofa आया तो फिर से मैंने उसका एक कोना पकड़ लिया
अब बैठती हूँ तो बस वही!

एक मधुर धुन की तरह जिसे हम दिन भर गुनगुनाते नहीं थकते
वो एक restaurant जहां हम दोस्तों के साथ कई दफ़ा जा चुके हैं, 100 दफ़ा उसमें कमियाँ निकालने पर भी फिर वही पहुँच जाते हैं और फिर वही order करते हैं ।

दोस्त जिन से लड़ते हैं झगड़ते हैं
एक दिन ना दिखे तो उन्हें बड़ा miss करते हैं ।

parties में एक song ऐसा होता है जो बस तुम्हारा और तुम्हारी gang का होता है
जिसके बजते ही कोई कहीं भी हो वो dance floor पर पहुँच जाता है।

वो एक चाट की दुकान जहां का चाट तुम्हें बहुत पसंद है
इन छोटी छोटी बातों की आदत सी पड़ गई है ।

आदत भी कितनी मासूम होती है ना कब लग जाती है पता ही नहीं चलता और छूटने पर कितनी तकलीफ़ दे जाती हैं ।




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