...

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सफ़र तुम बिन
तन्हाइयों से भरा हर लम्हा ग़ुजरता है
दर्द कों पसंद मैं वो यही पर ठहरता है

कैसे गुजरतें है दिन आती है कैसे शब
कितना जानेमन मुझ पे कहर बरसता है

सोचा ना कोई वक़्त ऐसा भी आ जाएगा
जिससे है उल्फत दिल उन्ही यादों से डरता है

सोचा ना था सफ़र तुम बिन जिस्त का कभी
लौट आने का तेरे दिल ये इंतज़ार करता है

बहुत समझाया है खुद को जाने वाले आते नहीं
कहता है दिल इश्क़ है ज़नाब ये कहाँ मरता है



© V K Jain