...

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इजाज़त है क्या??
कुछ पूछ लूँ तुम्हारी सख़्शीयत से
इजाज़त है क्या??

तुम समंदर के अंतिम छोर से,जो किसी को नहीं मिलते,
मेरे इश्क़ में रांझा बनने की हिम्मत है क्या?

ओर जब रो दूँ मै तुम्हारे आगे जी भर के,
तुम्हें चुप करवाने की आदत है क्या?

कुछ ख़ुशीयों भरें सपने बुने है इन आँखों ने,
पूरा करने की इजाज़त है क्या??

सारी रात लिखूँ मैं तुम्हारे लिए लफ़्ज़ अपने,
इन्हें पढ़ने की मोहलत है क्या?

हार जाऊँ जो ज़िंदगी में कभी,
तुम्हारे काँधे पे सिर रख के रोने की इजाज़त है क्या?

जब तुम कहते हो मै तुम्हारी हूँ,
रस्मों रिवाजों के साथ मेरा हाथ पकड़ने की हिम्मत है क्या??

सब कुछ लिख दूँ एक पंक्ति में आज मै,
तेरे घर के आँगन में मेरी पायल छनकाने की इजाज़त है क्या??

कुछ पूछ लूँ तेरी सख़्शीयत से,
बोल इजाज़त है क्या??