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पेम दीपक
काश तुम एकबारी फिर लौट आते फिर वो प्यार वाले बोल कह जाते जी जाता मैं फिर से एक दफा जो मरहम लगाने तुम मुझे चले आते

दुनिया की नज़रों से छुपते छुपाते कोई गलत पता लोगों को बताके सुलाते बांहों में मुझे कुछ पलों को काश तुम एकबार फिर लौट आते

करते मुझे गुस्सा फिर से रुलाते फिर से वो अपनी बातें दोहराते झूठा ही सही मगर प्यार दे जाते काश तुम एकबार फिर लौट आते

धीरे से आते फिर मुझको चौंकाते फिर नाजुक होठों से होठ सहलाते खोते तुम मुझमें मैं भी कहीं तुम में काश तुम एकबार फिर लौट आते

सहेली से मिलने के बहाने ही आते दो चार सहेलियां भी संग में ले आते प्यार भरी नज़रों से देख तो लेते हमें काश तुम एकबारी फिर लौट आते

काश तुम हमको दुनिया से चुराते
अपनों ही अपनों में हमको छुपाते लड़ जाते सबसे इक हमारी ख़ातिर काश तुम एकबार फिर लौट आते

फिर से इक धोखा देने ही आ जाते फिर एक दफा कोई खेल रच जाते आंसू ही सही पर कुछ देने तो आते काश तुम एकबार फिर लौट आते

काश तुम गलियां रस्ते भूल जाते हमारे मोहल्ले में आकर खो जाते जाते उस भीड़ में जो थी मेरे नाम की आख़िर हमारे जनाज़े में, शामिल हो जाते
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