...

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ललक अलख जगी जली
ललक अलख जगी जली ,,
उन्माद की उत्साह की ,,
मंजिल दिखी जो दूर है
ये राह ले हमें चली ,,
इधर उधर यहां वहां,
यू खो गया खयाल में,,
जकड़ लिया पकड़ लिया,,
असफलता की विचारों ने ,,

शिथिल - शिथिल पड़े कदम,,
जो रुक गया वह , थम गया,,
पाना था जिस मंजिल को
उसकी राहों में ही ठहर गया,,...

तब वेग में आई कमी ,,
उत्साह में आई नामी,,
एक व्यर्थ के विचार ने ,
शीथिल शीथिल किया कदम,,!!

भय को आज त्याग दो तुम ,
खुद को एक आवाज दो तुम ,,
ललकारों अपने भय को
और तीव्र अट्टहास दो तुम ,,

भीतर की ज्वाला आएगी
करेगी स्वर धधक धधक,,
ये भय को भस्म कर तेरे ,
मंजिल तुझे दिलाएगी ,,

भय है एक तुच्छ कल्पना,
इसका करो अब त्याग तुम ,
ललक जगा अलख जला,,
खुद पे करो विश्वास तुम ,।।।






© Mayank Kumar Kasaudhan