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" बिटिया रानी "
खानदान हिल उठे कुरीतियों ने भृकुटि तानी थी

पुरुष प्रधान समाज में बेटी बनी फिर रानी थी

सता चुके बहुत अब बेटी की कीमत पहचानी थी

दूर कुरीतियों को करने की सबने मन में ठानी थी

चमक उठी नारी जो धूमिल थी वह पुरानी थी

गायत्री की बोली में हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो सबकी बिटिया रानी थी



पहचान रही उसकी बेटी , भाई की बहन छबीली थी

शक्ति है नाम जिसका अबतक अकेली थी

लड़कर अपनों से पढ़ती लड़कर ही वो खेली थी

धैर्य ,साहस ,प्रेम , निरंतरता उसकी यही सहेली थी

नारी संघर्ष और उत्थान उसको याद जुबानी थी

गायत्री की बोली हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो सबकी बिटिया रानी थी



लक्ष्मी, सरस्वती ,दुर्गा , गायत्री ये नारी के अवतार

धन , ज्ञान , शक्ति , अध्यात्म दात्री के उपकार

नकली व्यूह रचकर नारी को कहा इन सबमे बेकार

साहस ,शक्ति , धन , वैभव जो थे उसके घरबार

कुरीतियों से छीन लिया उससे बनी कमजोरी की निशानी थी

गायत्री की बोली में हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो सबकी बिटिया रानी थी








© Gayatri Dwivedi