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योग्यता के अनुरूप वजूद
हम स्वयं को कम आंकतेहैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं....
जैसा सोचोगे, वैसे ही बन जाओगे,
जितना प्रयास करोगे, उतना ही फल पाओगे,
जितने भी सक्षम लोग यहां, सबकी एक कहानी है,
स्वयं को कम आंक,उन्होंने, हार कभी ना मानी है,
अपनी शक्ति अपने भीतर है,जो स्वयं जगानी पड़ती है,
जीवन में आगे बढ़ने की एक लौ जलानी पड़ती है,
हम स्वयं को कम आंकतेहैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं….,
औरों को जिम्मेदार ठहराते, अपने पीछे रह जाने की,
स्वयं जिम्मेदारी कब लेंगे, स्वयं को आगे बढ़ाने की,
रह भरोसे क़िस्मत के,
अपनी प्रतिभा निखार नहीं पाते,
सही समय बीत जाने पर, हाथों को मिल पछताते,
ईश्वर ने हमें हमारे लिए मित्र बनाकर भेजा है,
स्वयं का मूल्यांकन करने का अवसर देकर भेजा है,
हम स्वयं को कम आंकते हैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं….
कुंए के मेंढक को, कौन कुंए से बाहर निकलेगा?
खूंटे से बंधे हाथी को, कौन आज़ाद करायेगा?
अपनी आज़ादी के लिए प्रयास स्वयं करना होगा,
ऊंची उड़ान भरने के लिए, पंखों को फैलाना होगा,
हीरे की कद्र जौहरी को होती, जौहरी के पास जाना है,
स्वयं की क्षमताओं को कम आंक कर, स्वयं को ना मिटाना है,
हम स्वयं को कम आंकते हैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं….
© संवेदनाएं निधि भारतीय
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं....
जैसा सोचोगे, वैसे ही बन जाओगे,
जितना प्रयास करोगे, उतना ही फल पाओगे,
जितने भी सक्षम लोग यहां, सबकी एक कहानी है,
स्वयं को कम आंक,उन्होंने, हार कभी ना मानी है,
अपनी शक्ति अपने भीतर है,जो स्वयं जगानी पड़ती है,
जीवन में आगे बढ़ने की एक लौ जलानी पड़ती है,
हम स्वयं को कम आंकतेहैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं….,
औरों को जिम्मेदार ठहराते, अपने पीछे रह जाने की,
स्वयं जिम्मेदारी कब लेंगे, स्वयं को आगे बढ़ाने की,
रह भरोसे क़िस्मत के,
अपनी प्रतिभा निखार नहीं पाते,
सही समय बीत जाने पर, हाथों को मिल पछताते,
ईश्वर ने हमें हमारे लिए मित्र बनाकर भेजा है,
स्वयं का मूल्यांकन करने का अवसर देकर भेजा है,
हम स्वयं को कम आंकते हैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं….
कुंए के मेंढक को, कौन कुंए से बाहर निकलेगा?
खूंटे से बंधे हाथी को, कौन आज़ाद करायेगा?
अपनी आज़ादी के लिए प्रयास स्वयं करना होगा,
ऊंची उड़ान भरने के लिए, पंखों को फैलाना होगा,
हीरे की कद्र जौहरी को होती, जौहरी के पास जाना है,
स्वयं की क्षमताओं को कम आंक कर, स्वयं को ना मिटाना है,
हम स्वयं को कम आंकते हैं,
इसलिए पीछे रह जाते हैं,
अपनी योग्यता के अनुरूप,
अपना *वजूद* नहीं बना पाते हैं….
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