ग़ज़ल
हाल-ए-दिल दुनिया को हम बतलाएँ क्या
जी नहीं सकते तो अब मर जाएँ क्या (1)
इक न इक दिन तो तरस खाएँगे वो
ज़ख्म उनको आज फिर दिखलाएँ क्या...
जी नहीं सकते तो अब मर जाएँ क्या (1)
इक न इक दिन तो तरस खाएँगे वो
ज़ख्म उनको आज फिर दिखलाएँ क्या...