आईना
अभी ज़रा सा पैर ज़मीन पर रखा ही था
की उस पर नज़र पड़ी
पूछा मैंने ...कि क्या देख रहे हो ?
वो हँस कर बोला
जो मै देख रहा हूँ बताऊँ तुम्हें..
हूँ ...कह कर मैं
सुनने लगी
ये तुम्हारे शाने पर झूलती ज़ुल्फ़ें
हलकी सी हवा से मचल जाती है
ये तेरी पलकों का उठना गिरना
तिरछी निगाहों से यूँ बार -बार मुझे देखना
गालो पर पड़ते ये...
की उस पर नज़र पड़ी
पूछा मैंने ...कि क्या देख रहे हो ?
वो हँस कर बोला
जो मै देख रहा हूँ बताऊँ तुम्हें..
हूँ ...कह कर मैं
सुनने लगी
ये तुम्हारे शाने पर झूलती ज़ुल्फ़ें
हलकी सी हवा से मचल जाती है
ये तेरी पलकों का उठना गिरना
तिरछी निगाहों से यूँ बार -बार मुझे देखना
गालो पर पड़ते ये...