...

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यार झूंठे हैं,
तेरी आमद पे अ रकीब मेरे अश्फ़ाक रूठे हैं,
मेरे ग़म-ए-'उम्र-ए-मुख़्तसर हिस्सों में टूटे हैं,

बयां कैसे करूं मैं इस्ति'आरा-ए-ग़म, दिल की,
जब से हुआ रूखसार पे पर्दा सब ख्वाब छूटे हैं,

और हिफाजत छोड़ बैठा है जब से निगहबाँ मेरा,
मिलकर इज़्दिहामों ने मेरे वक़्त-ए-ख़्वाब लूटे हैं,

आंसू क्या छलका मेरी आंख से मय-ए-कौसर में,
की, मेरे नाम पर मैकदे में ज़र्फ़-ए-आफ़्ताब फूटे हैं,

और भला ये क्या मुझको इंसाफ़-ओ-'अदल देंगे,
हैं जितने शख्स मौजूदा, महफिल में यार झूंठे हैं,

© #mr_unique😔😔😔👎