#आज का आदमी
#आज_का_आदमी
आज का आदमी इतना बेबस, इतना लाचार हो गया है कि बिना किसी सहारे के दो कदम भी आगे नही बढ़ सकता। आदमी सिर्फ एक कठपुतली होकर रह गया है। आदमी सिर्फ ऊँच-नीच, जाति-धर्म, अर्वाचीन-प्राचीन के फेर में ही रह गया है। उसी के ऊपर एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ।
#आज_का_आदमी
दिशाहीन...
आज का आदमी इतना बेबस, इतना लाचार हो गया है कि बिना किसी सहारे के दो कदम भी आगे नही बढ़ सकता। आदमी सिर्फ एक कठपुतली होकर रह गया है। आदमी सिर्फ ऊँच-नीच, जाति-धर्म, अर्वाचीन-प्राचीन के फेर में ही रह गया है। उसी के ऊपर एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ।
#आज_का_आदमी
दिशाहीन...