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शिक्षक के शब्दों की अनंत धारा...!!!
#ज्ञानकीधारा

शिक्षक के शब्दों की छाया, जैसे जल में पड़े हल्के कंपन,
निर्मल तालाब के गहरे जल में उठे लहरों के संग।
जो दूर-दूर तक फैलते, बनते जाते अनगिनत गोल,
छूते किनारे, और आगे बढ़ते, न थकते, न कभी तोड़।।१।।

शब्द उनके जैसे पहला पत्थर, जो तालाब में गिरा,
हल्के से जल में हिलोर उठी, और फिर कभी न ठहरा।
विस्तार उनका अंतहीन, एक मार्ग से कई राहें,
जहाँ पहुँचते, वहाँ खिलते नये जीवन के चाहें।।२।।

हर लहर में एक विचार, हर धारा में सिखने की कला,
जो एक विद्यार्थी से दूसरे तक, ऐसे बहता जैसे जल।
न कोई रोक सके इनको, न कोई सीमा बाँध पाए,
जहाँ पहुँचते शिक्षक के शब्द, वहाँ नयी दिशाएँ दिखाए।।३।।

वे शब्द नहीं, प्रकाश की किरणें हैं, जो अंधकार को हरें,
वे विचार नहीं, संजीवनी हैं, जो जीवन में नव उमंग भरें।
शिक्षक का ज्ञान है ऐसा अमृत, जो कभी न हो क्षीण,
जैसे लहरें तालाब की, जो सदा रहे नवीन।।४।।

समय के साथ भी न थमे, न रुके इनका विस्तार,
पीढ़ी दर पीढ़ी बहते रहे, जीवन में करें सुधार।
शिक्षक का कर्म अदृश्य सही, पर उसका फल अनंत,
उनकी दी सीखें फैलें सदा, जैसे तालाब में उठे तरंग।।५।।

शिक्षक के शब्दों की छाया, जैसे अनंत सागर में हवा,
जो चलता है बिना रुके, छूता है दूर तक का आकाश।
उनकी हर बात, हर सीख में समाया है अनन्त संसार,
जो फैलता है यूँ ही सदा, अदृश्य किनारे तक, अथाह।।६।।

आओ नमन करें उन शब्दों को, जो करते हैं निर्माण,
शिक्षक के शब्द हैं वो बीज, जो लहरों सा करे विस्तार।
जिनके बिना ये जीवन सूना, अज्ञानी का अंधकार,
उनकी बातों से ही होता, शिक्षा का सच्चा संसार।।७।।
© 2005 self created by Rajeev Sharma