बहस।
दास्तान ख़त्म हुई क्या?
तुम्हें फिरसे मुहब्बत हुई क्या?
मैंने ओढ़ लिया तेरा रंग,
तुझे बहारों से कुछ ख़बर हुई क्या?
मैंने तो फूलों के कानों में कहा था!
तुमसे मेरी कुछ शिकायत हुई क्या?
तुमसे मिले हैं मौसम सारे!
कुछ उनसे मेरे बारे में बात हुई क्या?
कल से शाम बेचैन सी हैं!
तुम्हारी उससे कुछ बहस हुई क्या?
क्या हुआ इतना?तुम बात नहीं करते!
क्या मुझसे कुछ ग़लती हुई क्या?
यार...अब छोड़ भी दो यह रुसवाई,
तुम्हें किसी से मुहब्बत तो नहीं हुई ना?
यह सब धुंधला क्यूं नज़र आता हैं?
तुम्हारी आँखें नम हुई क्या?
ए मेरे जान ए नशी कुछ तो बोलो!
ज़ुबां को कुछ बीमारी हुई क्या?
ख़त्म करके यह सिलसिला भी,
तुम्हें दिल ए तसल्ली हुई क्या?
© वि.र.तारकर.
तुम्हें फिरसे मुहब्बत हुई क्या?
मैंने ओढ़ लिया तेरा रंग,
तुझे बहारों से कुछ ख़बर हुई क्या?
मैंने तो फूलों के कानों में कहा था!
तुमसे मेरी कुछ शिकायत हुई क्या?
तुमसे मिले हैं मौसम सारे!
कुछ उनसे मेरे बारे में बात हुई क्या?
कल से शाम बेचैन सी हैं!
तुम्हारी उससे कुछ बहस हुई क्या?
क्या हुआ इतना?तुम बात नहीं करते!
क्या मुझसे कुछ ग़लती हुई क्या?
यार...अब छोड़ भी दो यह रुसवाई,
तुम्हें किसी से मुहब्बत तो नहीं हुई ना?
यह सब धुंधला क्यूं नज़र आता हैं?
तुम्हारी आँखें नम हुई क्या?
ए मेरे जान ए नशी कुछ तो बोलो!
ज़ुबां को कुछ बीमारी हुई क्या?
ख़त्म करके यह सिलसिला भी,
तुम्हें दिल ए तसल्ली हुई क्या?
© वि.र.तारकर.