...

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अभिमन्यु
मेरी वीरता के कारण ही संकट मे मेरे प्राण थे,

सबने एक साथ चलाए मुझ पे कई बाण थे,

दुःख तो इस बात का है कि धर्मज्ञाता सारे मौन थे,

वंही पे अंगराज थे और वंही गुरू द्रोण थे।
© गरूड़