...

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संभालना पड़ा जिंदगी.....
जब किसी मोड़ पे आयी,
संभाल ना पड़ा खुदको जिंदगी,
चीजे अंदर भी बिखरी थी,
चीजे बाहर भी बिखरी थी,
किसी अँधेरे कोने मे,
बनके जुगनू संभाला खुदको जिंदगी,
टूटे आस की कच्ची ईमारत के सहारे
खुदको बसाया जिंदगी,
किसी गैरो की दुनिया मे,
अंजान फकीरा बनके खुदको पाला जिंदगी,
आख़री पैगाम की घड़िया भी मानो
चिल्ला के मार रहि हो जेसे ,
उस बिच भी तुझको संभाला जिंदगी.....

© pb
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