उलझनों का दर्पण
मैं इस तरह की उलझनों में उलझ गया हूँ कि चाह कर भी उनसे बाहर नहीं निकल पा रहा हूँ। मैंने कभी इन उलझनों को नहीं चुना था। मैंने तो सिर्फ आसान और बेहद खूबसूरत लोगों और नए रिश्तों को चुना था। मुझे लगा था कि हम अपने रिश्ते को नए आयाम देंगे, मिसालें कायम करेंगे। एक दिन हम लोगों को बताएंगे कि चाहे ज़िन्दगी कितनी भी तकलीफ़ें दे, अगर सच्चे रिश्ते बनाए हैं और अपने लोग आपके साथ खड़े हैं, तो आप हर कठिनाई का सामना मुस्कुराते हुए कर सकते हैं।
लेकिन कहते हैं न, चीजें आपके हिसाब से नहीं चलतीं और लोग आपके सोच के मुताबिक नहीं होते। जो चीजें और लोग शुरू में मुझे आसान और खूबसूरत लग रहे थे, वही एक समय के बाद मुश्किल और बदसूरत प्रतीत होने लगे।
आज के दौर में भले ही आप कितने भी अच्छे क्यों न हों, आपके दोस्त और रिश्तेदार तब तक साथ नहीं देंगे जब तक आप उनकी अपेक्षाओं पर...
लेकिन कहते हैं न, चीजें आपके हिसाब से नहीं चलतीं और लोग आपके सोच के मुताबिक नहीं होते। जो चीजें और लोग शुरू में मुझे आसान और खूबसूरत लग रहे थे, वही एक समय के बाद मुश्किल और बदसूरत प्रतीत होने लगे।
आज के दौर में भले ही आप कितने भी अच्छे क्यों न हों, आपके दोस्त और रिश्तेदार तब तक साथ नहीं देंगे जब तक आप उनकी अपेक्षाओं पर...