कविता और साहित्य
कुछ कविताएं बनी कभी शिशु मन की तो कभी प्रौढ़ मन की,
शिशु मन की कविताएं उल्लास, प्रेममग्न, निराशा से परे होकर बनीं,
प्रौढ़ मन की कविताएं वियोग, अधूरेपन, तृष्णा की तपती अग्नि से उत्पन्न होकर बनी,
ये मन भी कितना विभिन्नता से अपने आपको परिस्थिति अनुसार ढाल लेता है,
इसे पीड़ा भी मिली हो तो सहजता से अभिनय करके स्वयं को दूसरों के सामने रूपांतरित कर लेता है,
वास्तव में मानव मन के विभिन्न चरणों को आत्म-भाव में पिरोकर शब्दों के रूप में व्यक्त करना ही कविताओं और साहित्य के सृजन का आधार है, इसकी नींव रखने में "प्रेम" और "वियोग" दो ऐसे आधार स्तंभ हैं, जिनके बिना कविताओं और साहित्य का स्वरूप ही अकल्पनीय है,
"प्रेम" ने मीरा को कृष्ण से मिलाया तो "वियोग" ने उर्मिला को लक्ष्मण से बिछुड़ाया,
प्रेम भक्ति भी है और तृप्ति भी और...
शिशु मन की कविताएं उल्लास, प्रेममग्न, निराशा से परे होकर बनीं,
प्रौढ़ मन की कविताएं वियोग, अधूरेपन, तृष्णा की तपती अग्नि से उत्पन्न होकर बनी,
ये मन भी कितना विभिन्नता से अपने आपको परिस्थिति अनुसार ढाल लेता है,
इसे पीड़ा भी मिली हो तो सहजता से अभिनय करके स्वयं को दूसरों के सामने रूपांतरित कर लेता है,
वास्तव में मानव मन के विभिन्न चरणों को आत्म-भाव में पिरोकर शब्दों के रूप में व्यक्त करना ही कविताओं और साहित्य के सृजन का आधार है, इसकी नींव रखने में "प्रेम" और "वियोग" दो ऐसे आधार स्तंभ हैं, जिनके बिना कविताओं और साहित्य का स्वरूप ही अकल्पनीय है,
"प्रेम" ने मीरा को कृष्ण से मिलाया तो "वियोग" ने उर्मिला को लक्ष्मण से बिछुड़ाया,
प्रेम भक्ति भी है और तृप्ति भी और...