...

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गुजरा.बचपन फिर आ जाये
गुजरा बचपन फिर आ जायें
तुम गुड्डा लेकर आ जाओ
हम गुड़िया बन जाएं
गुजरा बचपन फिर आ जायें।
पल में रूठना पल मैं प्यार
कभी हो साथ कभी तकरार
पतझड़ सावन फिर आ जाए
गुजरा बचपन फिर आ जाए।
मोर पंख कौपी में रखना
धरती अपना बने बिछौना
पंख लगा कोई उसे बुलाए
गुजरा बचपन फिर आ जाए।
कंकड़ पत्थर बनै खिलौना
पल में हंसना पल में रोना
वे आंशू , अब कौन दिखाए
गुजरा बचपन फिर आ जाए।
बड़े मजे के दिन थे भाई
पैसे जोंड़े पाई पाई
गुल्लक फोड़ के सब ले आते
फिर मधुबन कि सैर कराते।
समय चक्र का पहिया घूमता
कागज की कश्ती बन जाती
जो बचपन के दिल को भाए
गुजरा बचपन फिर आ जाए।
वो पतंग की डोर कहां है
जीवन का वो छोड़ कहां है
उसको फिर से कोई बुलाए
गुजरा बचपन फिर आ जाए।

© नीरज कुमार