यह जीवन नौका।
जब आह रूह से उठती है
भस्म लोहा हो जाता है
लाठी की उस रूहानी चोट में
आवाज कहाँ कोई होती है
कुछ सोच समझ जब तक पाते
वजूद कण कण बिंध जाता है।।
यह फितरत ईक नादानी सी
जो खुद को खुदा समझता है
ईक नेमत सब जो मिला झोली में
रख ओज बस बात और बोली में
वह सब सिमट तब आगोश में है
हसरतें जितनी भी रिंद...
भस्म लोहा हो जाता है
लाठी की उस रूहानी चोट में
आवाज कहाँ कोई होती है
कुछ सोच समझ जब तक पाते
वजूद कण कण बिंध जाता है।।
यह फितरत ईक नादानी सी
जो खुद को खुदा समझता है
ईक नेमत सब जो मिला झोली में
रख ओज बस बात और बोली में
वह सब सिमट तब आगोश में है
हसरतें जितनी भी रिंद...