...

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ख़ामोशी के पहलू में
ख़ामोशी के हर पहलू में, शायद छिप गई सारी बातें।
जो कभी कहती थी हज़ारों बातें, आज शांत हो गई।

मेरी एक भूल है या मै कमबख्त खुद को ही भूल गई।
ज्ञात नहीं अब मै अपनी सारी ख्वाहिशें भूल गई।

अंधेरा हो या सवेरा हो क्या फर्क पड़ता है आजकल।
दिन में भी रंगीली बतियों की लगी रहती है चकाचौंध।

अब रात और दिन में आ चुकी समानता की बहार है।
हर कोई उजाले में बैठा,अपनी परेशानियों से हैरान है।

आज एक- दूसरे की भूल व कमियां ढूंढता इंसान है।
बस ख़ुद की तरीफदारी की सबको लगी भुखास है।

मेरी भूल कुछ ख़ास नहीं, जो शिकायतों की कतार है।
ख़ुद की कमियां भूल परख कर देखें, तब ही उद्धार है।