...

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साहस
जब समय- चक्र प्रतिकूल हो,
हर प्रण, प्रयास निर्मूल हो,
खण्डित तरिणी- मस्तूल हो,
हे केवट न साहस खोना,
निज- स्पृहा विरुद्ध सरस होना,
तुम क्षोभ की क्षमता क्षीण करो,
जीवन- समीक्षा उत्तीर्ण करो,
संचित सागर विस्तीर्ण करो,
बढ़ते रहो कर्तव्य- पथ पर,
निर्भीक बनो चलो डट कर,
दुविधाओं और बाधाओं से,
नर वीर नहीं विचलित होते,
ना कर्म- त्याग बेसुध सोते,
संतुलन ही जिसका हो आयाम,
कर्म करे जो हो निष्काम,
जीवन है उसी का सफल हुआ,
मिसालों में हो उसी का नाम।।
© metaphor muse twinkle