...

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गज़ल
इश्क़- ए -समंदर में लहरें यूँ उठ रही है
दिल- ए -कश्ती बेचैन है डूब जाने को।

हमने लाख कोशिशें की छुपाने की जमाने से
फिर भी खबर लग गयी कम्बख़्त जमाने को।

हर दीवारों के पीछे कुछ धुंआ सा उठ रहा है
जैसे जला रही है शमा परवाने को।

अब दुनियां से कैसे जवाब तलब करूँ
कब तलक बन्द रखूं खिड़की दरवाज़े को।

हर शख्स मुख़ालिफ़ बन बैठा है इश्क़ का
कह रहा इक चिंगारी हीं काफी होती है घर जलाने को।

या खुदा कुछ तो रहम फरमा दे मेरे ज़िन्दगी में
खंडहर होने से बचा ले मेरे इश्क़- ए- आशियाने को।

#life




© shalini ✍️