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मंजिल
हां थोड़ा रुके हैं जरूर मगर
फिर उठकर खड़े हो जाएंगे
मंजिल जो छूट गई थी हमसे
उस पर फिर से जोर लगाएंगे
कुछ देर के लिए हमारी आंखों में आंसू क्या आ गये
तुम भूल गए कि फिर कभी हम मुस्कुराएंगे
कुचल रहे थे जो हमें पल पल कमजोर बताकर
देख लेना सजदा करेंगे वो भी घुटनो पे आकर
भूलना मत कोई बच नहीं सकता
समय की कुटिल मार से
चोट होगी दिल पर उनके
किसी हथियार से नही बस शाश्वत प्यार से
जिस्म का घाव तो हर रोज़ भरते जाओगे
करदे गर चोट दिल पर तो उसे कैसे सह पाओगे
© Abhishek maurya
फिर उठकर खड़े हो जाएंगे
मंजिल जो छूट गई थी हमसे
उस पर फिर से जोर लगाएंगे
कुछ देर के लिए हमारी आंखों में आंसू क्या आ गये
तुम भूल गए कि फिर कभी हम मुस्कुराएंगे
कुचल रहे थे जो हमें पल पल कमजोर बताकर
देख लेना सजदा करेंगे वो भी घुटनो पे आकर
भूलना मत कोई बच नहीं सकता
समय की कुटिल मार से
चोट होगी दिल पर उनके
किसी हथियार से नही बस शाश्वत प्यार से
जिस्म का घाव तो हर रोज़ भरते जाओगे
करदे गर चोट दिल पर तो उसे कैसे सह पाओगे
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