...

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"तिरंगा"
ये सत्य हमेशा अमिट रहा,
शत्रुमुख नक्श पा न सका,
विश्वगुरु के गौरव संग,
'भारत' सर्वस्व अमर रहा।

धोखे कपटी सौदागर ने,
जब लूट हमारा ताज लिया,
राष्ट्र शक्तियां प्रखर हुईं,
जुर्रत को सहसा डिगा दिया।

भ्रम हीनभाव विद्वेश रचित,
चहुंदिश तिमिर फैलाया था,
इतना निर्मम बर्बर होकर,
नवअस्तित्व रचा न सका।

मातृत्व ने धैर्य संजोया था,
निर्भय प्रेम पिरोया था,
गोद खून से सींची थी,
तब वीर पुरुष अवतरित हुआ।

दुष्ट रूप संहार किये,
हृदयांचल शीश उठाया था,
प्रण...