...

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मुलाकात
मेरी ज़िंदगी की हसी शाम था वो
मैं मुस्कुराती थी गर अकेले में
तो उसका अंजाम था वो
मुकम्मल कोशिश की हमने
एक दूजे से रू बरु रू होने की
मगर हो नहीं पाए
क्योंकि....
इस फरेबी दुनिया का इंतजाम था वो