...

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गजले
ये जो आग बाहर जल रही है
ये आग मेरे सीने में भी जल रही है,
मैं पहले पानी की तरह बहता था,
अब आग बनकर जल रहा हु,
इस शरद मौसम में शराब तो पीलू मैं,
मगर शराब का नशा चढ़ता नही
कहि अंदर की आग दहकने न लग जाये,
मेने ख़ंजर खुद अपने दिल मे उतारकर लिया
उसे तो बस दिल से ख़ंजर निकालना है,
खुदा ने मरने के हजारों तरीके ईजाद किये हैं
ओर हम मर गए इश्क से
तेरे गम को, शिकवे को, गीले को, बेवफाई को, गले लगाकर मैं अजल से गजल पर आ गया,
इस ओस धुंध कोहरे में कही खो जाऊ
मगर ये शेरो शायरी गजले मुझे ढूंढ ही लेगी।
© Verma Sahab