मेरी आंखों का प्रस्ताव ठुकरा के तुम
मेरी आंखों का प्रस्ताव ठुकरा के तुम
मुझ से यू न मिलो अजनबी की तरह
मैं भी खुद को समंदर समझने लगूं
तुम जो मिल जाओ आ कर नदी की तरह
चांद चहेरे को सब शायरों ने कहा
मैं भी कैसे कहूं चांद में दाग़ है
दूध में थोड़ा सिंदूर मिल जाए तब
तेरा चहरा उसी तरह बे दाग़...
मुझ से यू न मिलो अजनबी की तरह
मैं भी खुद को समंदर समझने लगूं
तुम जो मिल जाओ आ कर नदी की तरह
चांद चहेरे को सब शायरों ने कहा
मैं भी कैसे कहूं चांद में दाग़ है
दूध में थोड़ा सिंदूर मिल जाए तब
तेरा चहरा उसी तरह बे दाग़...