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इश्क_ ए _बनारस
मैंने गंगा में कभी दीया नही जलाया
मगर इस बार तुम्हारे इंतजार में एक दीया जला कर देखा
की तुम मिल जाओगे किसी शाम मुझे इसलिए अस्सी घाट पर बैठ डूबते सूरज को देखा।

मेरी आखों में अब कोई चाहत नही , बस तुमसे मिलने की उम्मीद बाकी हैं।
आखों में कशिश लिए अस्सी घाट पर बाहें फैलाए मुझे बस तुम्हारी याद आती हैं।

इस बार जब बनारस आओगे तो इत्मीनान से मेरे लिए थोड़ा वक्त लेकर आना।
इंतजार का वक्त मेरे लिए काटना कितना मुश्किल होता है मुझे ये तुम्हें है बताना।

तुम्हें याद है क्या बारिश के मौसम में कुल्हड़ वाली चाय वही पास के चौराहे पे मिलने वाली पान की मिठास।
झुलसते धूप की तपिश में या बारिश की ठंडी फुहार में , पतझड़ के मौसम में तुम्हारे संग बिताए यादों का एहसास।

तुम्हें याद है क्या की जिस रोज़ हम आखिरी बार मिले तुमने कहा था "फिर आना मेरे शहर मुझसे मिलने "
तो देखो आज मैं इन बनारस की गलियों में फिर से आई हूं अपनी अधूरी मोहब्बत को पूरा करने।

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© shalu Gupta