इश्क_ ए _बनारस
मैंने गंगा में कभी दीया नही जलाया
मगर इस बार तुम्हारे इंतजार में एक दीया जला कर देखा
की तुम मिल जाओगे किसी शाम मुझे इसलिए अस्सी घाट पर बैठ डूबते सूरज को देखा।
मेरी आखों में अब कोई चाहत नही , बस तुमसे मिलने की उम्मीद बाकी हैं।
आखों में कशिश लिए अस्सी घाट पर बाहें फैलाए मुझे बस तुम्हारी याद आती हैं।
इस बार जब बनारस आओगे तो इत्मीनान से मेरे लिए...
मगर इस बार तुम्हारे इंतजार में एक दीया जला कर देखा
की तुम मिल जाओगे किसी शाम मुझे इसलिए अस्सी घाट पर बैठ डूबते सूरज को देखा।
मेरी आखों में अब कोई चाहत नही , बस तुमसे मिलने की उम्मीद बाकी हैं।
आखों में कशिश लिए अस्सी घाट पर बाहें फैलाए मुझे बस तुम्हारी याद आती हैं।
इस बार जब बनारस आओगे तो इत्मीनान से मेरे लिए...