...

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मेरे जानां
बहुत ख़ामोश होकर मैं
तुम्हे तकती हूँ कुछ ऐसे
कि जैसे तुम
मेरे ना हो
कि मुझसे तुम
जुदा से हो
ना जाने क्यूं
मेरे जानां
मुझे डर ऐसा लगता है
ना जाने क्यूं
मेरे हमदम
मैं इन सोचों में
रहती हूँ
हो तुम मासूम
कुछ इतने
कि जब भी
तुमको मैं देखूं
तो दिल करता
मेरा कुछ ये
कि तुमको देखना जानां
कभी भी मैं नही छोड़ूं
तुम्हे बस देखती जाऊं
हमेशा देखती जाऊं
मगर बस इक
कमी है ये
मेरी सोचें
मुझे जानां
तुम्ही से दूर करती हैं

© Arshi zaib