...

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बेदर्द ज़माना ऐसा निकला
कुछ लोग समझते हैं हमको
कुछ ने समझना छोड़ दिया।
बेदर्द ज़माना ऐसा निकला
जो सच से रिश्ता तोड़ लिया।

सपनों के पीछे भाग भाग कर
बेबस और लाचार हुआ है
व्यसनो से वाधित होकर
व्यथित और बेजार हुआ है
मर्यादायें टूटी संस्कृति भूली
लालच का बाजार गरम है
बेमानी है सब रिस्ते नाते
आँखों में अब कहाँ शरम है
अब अपने हुये बेगाने सारे
अपनों से नाता तोड़ लिया।
बेदर्द ज़माना ऐसा निकला
जो सच से रिश्ता तोड़ लिया।

बदल गई...