...

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गुज़ारा
अजनबी जो मिलते हैं क्या दोश हमारा होता है।
कुछ हमारा इशारा कुछ उनका इशारा होता है।

फ़िर जो मिलने जुलने बातें सतें करने लगते हैं!
बातें करते करते फिर आँखों का तारा होता है।

हम दिल को लिए शहर शहर फिरते रहते हैं!
कभी इसका तो कभी उसका सहारा होता है।

अपने जीवन की बस ये कहानी है"महज़ जी"!
दफ्तर जाना शेर सुनाना यूँ ही गुज़ारा होता है।
© महज़