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वाणी
" धनुष -बाण" आप सब इस सस्त्र से वाकिफ़ तो होंगे ही। भगवान श्री राम के छोटे भाई श्री लक्ष्मण के पास धनुष बाण हुआ करता था। ये प्राचीन काल में युद्धों में इस्तेमाल किये जाने वाले सस्त्रों में से एक है। इसके बाण से मनुष्य को बहुत गहरा चोट पहुँचता है।

यदि मैं कहूँ प्रत्येक मनुष्य के पास धनुष बाण है, तो क्या आपलोग सहमत होंगे। शायद ज्यादातर लोग इससे सहमत नहीं होंगे। परंतु वास्तव में हम सबके पास धनुष-बाण तो है। हमनें कभी गौर ही नहीं किया है। मनुष्य के होंठ की रचना बिल्कुल धनुष की तरह और जीभ की रचना बिल्कुल बाण की तरह परमात्मा ने की है। धनुष की और हमारे होंठ की बनावट एक जैसी है। और दोनों के बाण से सामने वाले इंसान को बहुत गहरी चोट पहुँचती है। अर्थात्‌ हम ऐसे शब्दों का प्रयोग कर जाते हैं दूसरों के लिए जो सुनने वाले इंसान के दिल में कुछ इस कदर घाव कर जाता है जो केवल मरणोपरांत ही भरता है। हम जो शब्द दूसरों के लिए इस्तेमाल करते हैं कभी गहराई से सोच कर देखें यदि वही शब्द हमारे लिए कोई और इस्तेमाल करे तो क्या हम उसे स्वीकार कर पाएंगे यदि हाँ तो बेशक दूसरे भी उसे स्वीकार कर लेंगे। किसी से मधुर वाणी में बात करने से लोग आपकी ओर आकर्षित होते हैं।
अब देखिए ना कितनी विचित्र सी बात है। मीठा बोलने वाले का मिर्च बिक जाता है और कडवा बोलने वाले का शहद तक नहीं बिकता। कोयल और कौवा पंछी तो दोनों ही हैं। परंतु हम कोयल को पसंद करते हैं कौए को नहीं। सब वाणी का ही तो खेल है।
वाणी से आप बहुत कुछ जीत सकते हैं और बहुत कुछ हार भी सकते हैं, तो फैसला आपके स्वयं के हाथों में है। आप अपनी जिंदगी में कुछ जीतना चाहते हैं या कुछ हारना।

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अपने शब्दरूपी बाण से,
कभी दिल ना दुखा लोगों का।

एक बार जो बोला तूने,
लौट के ना आएगा।

कुछ इस कदर घाव देगा,
जो मरणोपरांत ही भर पाएगा।

चुन-चुन कर बोला कर,
जो स्वयं तू स्वीकार कर पाएगा।
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