...

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रेगिस्तां
फैली रेगिस्तां में दूर तलक,
कोई जीवन न नजर आ रहा।

तर-तर,भर-भर भटक रहा मैं,
कोई जीवन न नजर आ रहा।

दूर टीलों पर नजर आ रहा,
साँप,बिचछी और काँटो का बशेरा ।

और गरम हवा,
रेत को समेटा।

ठीक होती है ऐसे ही,
कुपात्र लड़कों का सबेरा।

जिसमे की मिलता उन्हें,
गलत संगति का नशेरा।

जिस संगति में उन्हे दिखाई देता,
सिर्फ़ बम,बंदूक और बन्तूल बुखेरा।

क्यों न अन्त होता,
ऐसी कुपात्रता का।

जिसमे की मिलता उन्हे सिर्फ़,
रेगिस्तां का सबेरा।

:-दिव्य प्रकाश