शीर्षक: पांचाली का चीर हरण
दुर्योधन की सभा में जब, हुआ अधर्म का नर्तन था,
पांचाली रोई विनती कर, पर न्याय रहा अर्पण था।
धृतराष्ट्र के दरबारों में, बस मौन मुखरित पाए गए,
जो धर्म-पथ से डिग बैठे, वे दासत्व अपनाए गए।
भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य तक, कर्तव्य भूल जो चुप बैठे,
उनके मुख से न्याय नहीं, पर अपमान के शब्द निकले।
राजसभा के वीर सभी, उस दिन निर्बल कहलाए थे,
जो देख...