...

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मेरे किरदार में
वक्त ने कतर दिए पंख हमारे ख्वाहिशें डूबी मझधार में
वरना कीमत बहुत थी हमारी काबिलियत के बाज़ार मे

नजरें थी सूरज पर मेरी पांव थे बहती धार में
जाने कैसे आ गए हम कफन के कारोबार में

चमकती थीं लकीरें मेरी क्यों आज आंखों में पानी है
मौसम बदल गया शायद कुछ नमी है मेरे अशआर में

चुकाए हैं कई कर्ज गमों के ज़िंदगी फिर भी बाकी है
नाखुश थे अकारिब मेरे दे दी खुशियां उधार में

थक गए हैं बाजू अब चाहत है मिट्टी ओढ़ कर सो लूं
बस यहीं तक लिखा था शायद खुदा ने मेरे किरदार में

© सोनी