...

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मैं
हम कहा सताते है लोगो को,
हम तो खुद सताए हुए हैं इश्क से,
ओर मरने का दर्द कौन समझ पायेगा हमसे बेहतर,
हम तो कब के मर चुके हैं जमाने मे,
पास बैठे पछियों को भी नही उड़ाते,
हम जानते हैं बिछड़ जाने का दर्द,
कई सदियों से अपने कन्दो पर बोझ लिए घूमते हैं,
हम तो खुद का जनाजा लिए घूमते हैं,
एक अरसे बाद खुद से मिलकर आया हु,
कह रहा था मैं खुद को मिलकर
मंजिल सफर, ओर महोबत इंतजार मांगती है।
ख्वाबो की कीमत हमसे पूछो,
हम सोए नही कई जमाने से।
गम बड़े बेदर्द होते हैं,
आजकल हम बड़े गम में रहते हैं
© Verma Sahab