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जिस्मों के साथ जितने साए हैं
जिस्म के साथ जितने साए हैं,
उतने ही अंधेरे चारों ओर हैं।
कुछ तो दुख के, कुछ तो दर्द के,
कुछ तो तन्हाई के एहसास हैं।

हर चोट की निशानी उसमें है,
हर तकलीफ की एक कहानी है।
वह चुपचाप बिठाये बैठा है,
पर उसकी आंखों में बहुत पानी है।

कभी तो हंसता हुआ नजर आता है,
और कभी उदास सा दिखता है।
कोई जानता नहीं उसके बारे में,
उसके दर्दों के बारे में नहीं है।

जिस्म के साथ जितने साए हैं,
उतने ही अंधेरे चारों ओर हैं।
पर वह हमेशा एक आस बना कर रखता है,
कुछ नया करने की हर पल को तरसता है।
अनिरूद्ध बोदड़े