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औरत तेरी यही कहानी!
औरत तेरी यही कहानी...
मुझ को लिखनी है अपनी जुबानी!

फैला के पंख अपने, यह संसार समेटा है,
खोल दिए है बंधन सारे,डर को निकाल फेंका है!
रोजमर्रा के सारे काम हंस के कर लेती हूँ,
लेकिन पति श्री को एक दिन जरूर देतीं हूं,
रविवार को वो चाय बनाते, मैं देर तक सो लेतीं हूँ!
आदर सम्मान में कमी नहीं की !
सबके साथ बैठ कर, मैं भी टीवी देख लेती हूँ,

सबकी सेहत के साथ साथ
अपना ख्याल खुद रख लेती हूँ,
सासु माँ के साथ मंदिर जाकर,
अपने साथ उनकों भी योगा करवा लेती हूँ,

कभी कभी नियम तोड़ कर बच्चों के साथ बर्गर पिज़्ज़ा भी उड़ा लेती हूं!
गलत को गलत ,सही को सही बोलने की हिम्मत रखतीं हूँ!

तमन्ना दिल की नहीं दबाती....
हर पल को जी भर कर जीतीं हूँ,
औरत तेरी यही कहानी..
मुझ को लिखनी है अपनी जुबानीं!!
✍ranu

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