...

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क्या लिखूँ मैं.....
क्या लिखूँ मैं
तेरी इस मुस्कुराहट पर जिसको
देख कर मैं खो सा जाता हूँ.....
क्या कहूँ मैं तेरी
इन मासूम अदाओं पर जो मदहोश
होकर बस तेरा हो सा जाता हूँ......!!

सोचता हूँ सुलझाऊँ
तेरी उलझी लटों को जिसमें मेरा दिल
बस उलझा रहता है...
थाम लूँ तेरे उड़ते आँचल को
जो भरी जवानी तुझे ओढ़े रहता है....!!

लिख दूँ मैं दो अक्षर
इन मदमस्त नैनों पर जो मुझसे
हर वक़्त शिकायत करते रहते हैं.....
छूँ लूँ तेरे नर्म गुलाबी होंठो को
जो एक अलग सा नशा घोल रहते हैं....!!

खोल दी अपनी बंद पलकों को
जो मेरे ख़्यालों में ही डूबे रहते हैं...
आ चलें फिर उन हसीन वादियों में
जहाँ दो बेसब्र दिल
मिलने को बेकरार हुए रहते हैं...!!!


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© कुन्दन प्रीत