कृष्णमय शब्दावली
मोरी नैय्या डूबत जाए मझधार,
भव से पार लगाओ हे! खेवनहार,
विनती करूं तोसे अरज सुनो मोरी,
नैनन मूंद खड़ी बीच काहे बिसरे तुम मोहे,
प्रीति नहिं ये झूठी मोरी दरस को अंखियां तरसे,
कासे कहूं हिय की पीर इत कोऊ...
भव से पार लगाओ हे! खेवनहार,
विनती करूं तोसे अरज सुनो मोरी,
नैनन मूंद खड़ी बीच काहे बिसरे तुम मोहे,
प्रीति नहिं ये झूठी मोरी दरस को अंखियां तरसे,
कासे कहूं हिय की पीर इत कोऊ...