...

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दर्पण एक आवाज
जब दर्पण के सामने खड़े होकर निहारती हूँ खुदको......
तब तब यह दर्पण मुझे मुझसे मिलाता है
दबे पड़े है जो मेरे भीतर कुछ अनकहे से अल्फ़ाज
वही अल्फ़ाज यह दर्पण मुझे सुनाता है....!!

शायद कुछ कहना चाहता है यह दर्पण मुझसे....
तेरे जैसा न इस संसार में कोई हैं
आज देखती है जो भी सपने तू खुली आँखों से
अपने इन्ही सपनो की तू मंजिल...