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धूप या छांव...!!!
धूप की किरनें, सुनहरी आभा में लिपटीं,
छू लें तन, मन के भीतर तक जलीं।
चमकते क्षणों में सपनों का सार,
जीवन का संगीत, हर पल बेशुमार।।१।।

छांव का आंचल, ठंडक से भरा,
सहलाए मन, थके हुए तन को धरा।
विराम की शांति, जैसे अम्बर में रात,
सुकून का स्पर्श, सुखद हर बात।।२।।

धूप में जलन, पर संघर्ष की ज्योति,
छांव में विश्राम, पर आलस की रेखा।
दोनों ही रंग, इस जीवन के अंग,
धूप से लड़ाई, छांव से उमंग।।३।।

धूप हो या छांव, दोनों का संग,
सिखाते हमें, जीवन का रंग।
कभी तपिश, कभी ठंडक का मेल,
इनमें ही बसा है जीवन का खेल।।४।।
© 2005 self created by Rajeev Sharma