इंसान
फूल हूं एक चराग़ हूं
मैं कौन हूं अंजान हूं
क़ाफिलों से दूर हूं
ख़ुद ही की तलाश हूं
मुझे ग़ौर से देखने पर
आप सा ही इंसान हूं
किसी नदियां की धार पर एक पत्थर बिन किनारे
खड़ा है अपने वजूद को बचाए वहीं मजधारे
बिखरी हुई उस धार में वो ख़ुद को कैसे जानता है
वो पानी नहीं एक पत्थर है ये सच कैसे पहचानता है
क्यों बहता नहीं वो इस धार में क्यों उसने रुकने की ठानी है
क्यों चोट खा रहा है वो दे रहा जो दर्द नदियां का पानी है
क्या ऐसा ही मेरा वजूद है या कंकर सा बहना रिवाज़ है
ये नदियां क्या मेरी हक़ीक़त है या आब मेरा...
मैं कौन हूं अंजान हूं
क़ाफिलों से दूर हूं
ख़ुद ही की तलाश हूं
मुझे ग़ौर से देखने पर
आप सा ही इंसान हूं
किसी नदियां की धार पर एक पत्थर बिन किनारे
खड़ा है अपने वजूद को बचाए वहीं मजधारे
बिखरी हुई उस धार में वो ख़ुद को कैसे जानता है
वो पानी नहीं एक पत्थर है ये सच कैसे पहचानता है
क्यों बहता नहीं वो इस धार में क्यों उसने रुकने की ठानी है
क्यों चोट खा रहा है वो दे रहा जो दर्द नदियां का पानी है
क्या ऐसा ही मेरा वजूद है या कंकर सा बहना रिवाज़ है
ये नदियां क्या मेरी हक़ीक़त है या आब मेरा...