सखी का वन विहार
#बूंदयात्रा
बड़ा महीन रंग है इस घांघरे का,
हल्का आसमानी क्या खूब जचेगा मुझ पर,
मैं उठी,
और फटाफट कपड़े बदल आई,
चल तू भी तैयार हो जा सखी,
पर,
पारदर्शिता ही जचेगा तुझ पर,
सावन के बाद,
मध्य भादो की ये बौछार,
तेरे लिए भी खास और मेरे लिए भी,
अपनी सखी,
दर्पण को ये सब बता,
तैयार कर दिया मैंने उसे भी,
अच्छा लगता है ना,
किसी की आहट में संवरना तुझे भी,
आदत है मेरी,
संग अपने मैं सखी भी सजा लेती हूं,
खोलती हूं,
एक अरसे से बंद पड़ी,
वो जंग लगी...
बड़ा महीन रंग है इस घांघरे का,
हल्का आसमानी क्या खूब जचेगा मुझ पर,
मैं उठी,
और फटाफट कपड़े बदल आई,
चल तू भी तैयार हो जा सखी,
पर,
पारदर्शिता ही जचेगा तुझ पर,
सावन के बाद,
मध्य भादो की ये बौछार,
तेरे लिए भी खास और मेरे लिए भी,
अपनी सखी,
दर्पण को ये सब बता,
तैयार कर दिया मैंने उसे भी,
अच्छा लगता है ना,
किसी की आहट में संवरना तुझे भी,
आदत है मेरी,
संग अपने मैं सखी भी सजा लेती हूं,
खोलती हूं,
एक अरसे से बंद पड़ी,
वो जंग लगी...