नारी ही क्यों हारी है ?
नौ महीनां तो पेट मांय ढौवां,
पछ प्रसव पीड़ झिलावो हो।
एक दिन मोट्यार हो ज्यावो,
पाछैं म्हां पर हाथ उठावो हो ?
पैली तो घर-बार छुड़ा द्यो,
हाथ पकड़ कर ल्यावोे हो।
बो पल्लो हो या सांकळ ही,
थे म्हां पर लाठ्याॅं बावो हो ?
वनवास राम री किस्मत ही,
सीता क्यों जंगळ छाणै ही ?
धोबी री बात सुण तज देसीं,
बा पहल्याॅं थोड़ी जाणै ही ?
भाई हुवे तो लिछमण जस्यो,
ओर आ बात भी सांची है।
लुगाई हुवे तो, उर्मिला जसी,
थे कठे आ बात भी बांची है ?
राधा री किस्मत ही खोटी ही,
या रुक्मणीं रा भाग माड़ा हां ?
थे महाभारत रो अंत जांणियाॅं,
पछ आ दोन्यां नै क्यों मारा हा ?
पांच्यूं भाई आपस मै बांट ल्यो,
बा नारी ही कोई नाज कोनी ही।
थे बस खड़्या तमाशो देख्यो,
जद द्रौपदी रै लाज कोनी ही ?
मां बाप रे खातर मामो मार्यो,
तो पछ बस मथुरा ही थारी ही ?
कोख जण्या सौ पूत मराया,
कन्हैया, माॅं ही तो गांधारी ही।
विष्णु जी! चैन हूं कोनी सोबा द्यूं,
सगळा सवाल नींद उड़ा राखी है।
आंका जवाब तो देणां ही पड़सीं,
पाछैं तो बस, थोड़ा सा बाकी है।
© छगन सिंह राजस्थानी
पछ प्रसव पीड़ झिलावो हो।
एक दिन मोट्यार हो ज्यावो,
पाछैं म्हां पर हाथ उठावो हो ?
पैली तो घर-बार छुड़ा द्यो,
हाथ पकड़ कर ल्यावोे हो।
बो पल्लो हो या सांकळ ही,
थे म्हां पर लाठ्याॅं बावो हो ?
वनवास राम री किस्मत ही,
सीता क्यों जंगळ छाणै ही ?
धोबी री बात सुण तज देसीं,
बा पहल्याॅं थोड़ी जाणै ही ?
भाई हुवे तो लिछमण जस्यो,
ओर आ बात भी सांची है।
लुगाई हुवे तो, उर्मिला जसी,
थे कठे आ बात भी बांची है ?
राधा री किस्मत ही खोटी ही,
या रुक्मणीं रा भाग माड़ा हां ?
थे महाभारत रो अंत जांणियाॅं,
पछ आ दोन्यां नै क्यों मारा हा ?
पांच्यूं भाई आपस मै बांट ल्यो,
बा नारी ही कोई नाज कोनी ही।
थे बस खड़्या तमाशो देख्यो,
जद द्रौपदी रै लाज कोनी ही ?
मां बाप रे खातर मामो मार्यो,
तो पछ बस मथुरा ही थारी ही ?
कोख जण्या सौ पूत मराया,
कन्हैया, माॅं ही तो गांधारी ही।
विष्णु जी! चैन हूं कोनी सोबा द्यूं,
सगळा सवाल नींद उड़ा राखी है।
आंका जवाब तो देणां ही पड़सीं,
पाछैं तो बस, थोड़ा सा बाकी है।
© छगन सिंह राजस्थानी