...

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कुछ बारिशें..मन तक जाती...
कुछ बारिशें..
मन तक जाती...

फुहारें बारिश के पानी की,
फुहारें जानी पहचानी सी,
तन-मन को भिगोती,
अल्हड़, अलसाती,
कुछ बारिशें..

तन पर पड़ी कुछ बूंदे,
मन तक पहुँच जाती,
अलबेली, अनजानी,
यादों की याद दिलाती,
कुछ बारिशें..

शिकायतें भी कुछ,
रवायतें भी कुछ,
रवायतों के पार जाती,
ख्वाहिशें बरसाती,
कुछ बारिशें...

अकल्पनीय कल्पनाओं में
लफ़्ज़ों की वफाओं में,
आभा बूंदों की,
ख्वाबों सी झिलमिलाती,
कुछ बारिशें...
©शैलेन्द्र राजपूत
24.07.2020
© Shailendra Rajpoot